महाभारत की कहानी कई वीरों की गाथाओं से भरी हुयी है। लेकिन महाभारत के युद्ध में कौरवों और पाण्डवों के युद्ध में असंख्य वीर योद्धा मारे गये थे। महाभारत युद्ध विजय के बाद कुछ साल शासन करने के बाद पाण्डवों ने भी अपनी देह त्याग दी थी। लेकिन दो योद्धा ऐसे थे जो कभा मारे ना जा सके । एक वीर अष्वस्थामा के बारे में तो हम काफी कुछ पढ चुके है लेकिन क्या आपको पता है कि महाभारत में एक और योद्धा ऐसे थे जिन्हें अमरता का वरदान प्राप्त था। हॉ ओर उन योद्धा का नाम था कृपाचार्य। कौन थे कृपाचार्य और कैसे मिला था उन्हें अमरता का वरदान आईये जानते है।
इंद्र ने भेजी थी अप्सरा
कृपाचार्य के पिता का नाम महर्षि शरद्वान और मॉ का नाम जनपदी था। महर्षि शरद्वान ने घोर तपस्या करके दिव्य शस्त्र हासिल किये थे और साथ ही वे धर्नुविद्या में भी निपुण थे। उनकी बढती शक्ति को देखकर देवराज इंद्र को डर लगने लगा था। इसलिये उनकी तपस्या भंग करने के लिये इंद्र ने जानपदी नाम की अप्सरा को भेजा। इस अप्सरा को देखकर ऋषि शरद्वान का वीर्यपात हो गया। उनका वीर्य एक सरकंडे पर गिरा। और दो भागों में बंट गया।
कौरवों की ओर से लडे थे
दो भागों में बंटे ऋषि शरद्वान के वीर्य से एक कन्या और एक बालक का जन्म हुआ। लेकिन शरद्वान और जनपदि ने इन्हें जंगल में छोड दिया। जहां भीष्म के पिता महाराजा शांतनू ने इनका लालन पोषण किया। इसी वजह से इनका नाम कृप और कृपी पडा। बडे होने पर ये भी अपने पिता की तरह धनुर्विद्या और शस्त्र विद्या में पारंगत हुये ।तब भीष्म ने इन्हें पाण्डवों और कौरवों की षिक्षा की जिम्मेदारी सौंपी। महाभारतु़़द्ध में कृपाचार्य कौंरवों की ओर से लडे। लेकिन युद्ध में कौरवों के खत्म हो जाने के बाद इन्होनें राजा परिक्षित को भी धनुर्विद्या सिखायी थी।
धर्मषास्त्रों में है अमर लोगों में वर्णन
इनकी बहन कृपी का विवाह द्रोणाचार्य से हुआ था। अष्वस्थामा कृपाचार्य का भांजा था। हिन्दू धर्मषास्त्रों के अनुसार आठ लोगों को अमर बताया गया है। जिसमें कृपाचार्य का नाम भी लिया जाता है। हिन्दू धर्मषास्त्र के अनुसार हनुमानजी,महर्षि वेदव्यास, राजा बलि, अष्वस्थामा, विभिक्षण, कृपाचार्य, परषुराम और ऋषि मार्केण्डेय को अमर बताया गया है। इनका जन्म हुआ तब से लेकर आज तक जीवित है। अब ये किस भेष में हमारे बीच रहते हो यह किसी को पता नहीं है।