रावण के बारे में तो हम सब जानते ही है कि उसने माता सीता का हरण किया इस कारण राम और रावण का युद्ध हुआ| और उसमें श्रीराम ने विजय पायी और रावण का वध किया। लेकिन साथ भी यह बात भी ध्यान में रखने की है कि रावण एक महाबलशाली था इस कारण स्वयं भगवान विष्णु को उसका वध करने के लिये अवतार लेना पडा था। रावण इतना बलषाली था कि उसके डर से देवता भी भाग खडे होते थे। और इस बात का उसे बहुत घमंड था। लेकिन राम के अलावा एक और राजा ने उसका घंमड चुर चुर कर दिया था और उसका नाम था सहस्त्रबाहु अर्जुन। आइये जानते है कौन था सहस्त्रबाहु अर्जुन और कैसे किया था उसने रावण का घमंड चूर।
महिष्मति नगरी का राजा था यह महायोद्धा
रावण को अपने बल पर बडा ही घमंड था। उसे लगता था कि उसके जैसा बलशाली संसार में कोई नहीं है इसलिये वह विष्व विजय के लिये घुमता रहता था। ऐसे ही घुमते घुमते वह एक बार महिष्मति नगर पहॅुच गया। उस समय वहां पर कार्तवीर्य अर्जुन नामक राजा राज्य करते थे। महाप्रतापी राजा अर्जुन के हजार भूजायें थी इस कारण उन्हें सहस्त्रबाहु अर्जुन भी कहा जाता था। रावण ने महिष्मति नगरी में पहॅुचकर वहां के मंत्रीयों से कहा कि सहस्त्रबाहु अर्जुन को भेजो मैं उससे युद्ध करना चाहता हॅू। तब उनके मंत्रीयों ने बताया कि महाराज तो अभी नगर में उपस्थित है नहीं। मंत्रीयों से ऐसा सुनकर रावण अपने साथियों के साथ विध्याचंल पर्वत की और चला गया।
हजारों भूजा से रोक दिया था नदी का वेग
वहां पास में ही नर्मदा नदी बह रही थी। उसने वहां स्नान किया और अपने मंत्रीयों और सैनिकों को पुजा के लिये फूल लाने भेज दिया। रावण के मंत्री और सैनिकों ने थोडे ही देर में फूलों का ढेर नदी के पास लगा दिया। अब रावण ने स्वर्ण के शिवलिंग को नदी के किनारे स्थापित कर चंदन आदि से महादेव जी का पूजन करने लगा। लेकिन थोडे ही देर में नर्मदा नदी जो शांत बह रही थी एकाएक उसका जलस्तर बढने लगा और जो फूल और पूजन सामग्री थी वह नर्मदा नदी के उस वेग में बह गयी। रावण को एकाएक नदी में आयी इस बाढ से आष्चर्य हुआ और उसने अपने दो सैनिक शुक और सारण को इसका पता लगाने के लिये भेजा।
रावण को उठना पडा था आधी पूजा करके
शुक और सारण ने देखा कि रावण जहां पूजा कर रहा था वहां से करीब आधा योजन की दूरी पर एक राजा बहुत सारी रानियों के साथ जलविहार का आनंद ले रहा था। वह सहस्त्रबाहु अर्जुन था। और उस महाबलशाली योद्धा ने अपनी सहस्त्र भूजाओं का वेग रोक रखा था जिसके कारण वहां बाढ आ गयी और रावण को पूजन आधा छोडकर उठना पडा था। जब शुक और सारण ने यह बात रावण को बतायी तो वह गुस्से में गरजता हुआ वहां पहॅुचा जहां सहस्त्रबाह ु अर्जुन अपनी रानियां के साथ जलविहार का आनंद ले रहा था।
जलविहार का आनंद ले रहा था सहस्त्रबाहु अपनी रानियों के साथ
रावण ने सहस्त्रबाहु के मंत्रियों से कहा कि तुम्हारे राजा को बुलाओ मै अभी उससे युद्ध करूॅगा। तब अर्जुन के मंत्रीयों ने कहा कि तुम देखते नहीं कि अभी महाराज मदिरा में मस्त होकर अपनी रानियों के साथ जलविहार का आनंद ले रहे है तुम्हें अगर युद्ध की इच्छा है तो तुम बाद में आकर लड सकते हो। या तुम्हें अभी लडने की इच्छा है तो पहले तुम्हें हमसे युद्ध करना होगा। ऐसा सुनते ही रावण ने उसके सैनिकों से लडने लगा। रावण भी महाबलषाली था उसने थोडे ही देर में अपने प्रहारों से उसके सैनिकों को यमलोक पहॅुचा दिया। कुछ सैनिक बचे वह डरते डरते जलविहार कर रहे राजा सहस्त्रबाहु के पास पहॅुचे और रावण के साथ हुया वृतांत कह सुनाया। तब अर्जुन ने कहा कि अब चिंता मत करो मै संभाल लूॅगा।
गदा के प्रहार से दुर जाकर गिरा था रावण
तब उस महाबलषाली सहस्त्रबाहु अर्जुन ने अपनी गदा को अपने हजारों भूजाओं से पकडा और रावण के साथ युद्ध करने लगा । ऐसा लग रहा था कि दो मदमस्त सांड आपस में लड रहे हो। दोनों ही महा बलषाली थे। दोनों एक दुसरे पर गदाओं के प्रहार कर रहे थे। तब लडाई के कुछ अधिक समय हो जाने पर कार्तवीर्य अर्जुन ने अपनी हजार भूजाओं से गदा का ऐसा भीषण प्रहार रावण पर किया कि वह कुछ दूरी पर जाकर गिरा और दर्द के मारे रोने और चिल्लाने लगा। तब उसी समय अर्जुन ने अपनी हजार भूजाओं से उसे पकड लिया और बांध दिया। रावण को बांधकर वह अपनी नगरी में आया तब वहां के नगर वासियों ने सहस्त्रबाहु अर्जून का फूलो आदि से स्वागत किया।
पुलत्सय ऋषि के कहने पर छोडा था रावण को
जब इस बात की खबर पुलस्तय ऋषि को लगी तब वह अपने पौत्र रावण को छुडाने के उद्देष्य से महिष्मति पूरी पहॅुचे उनके आगमन की सूचना जब सहस्त्रबाहु अर्जुन को हुई तब वह उनकी अगवानी के लिये पहॅुचा और उनका उचित सम्मान करके बोला कि हे ऋषिवर आपके दर्षन पा मैं धन्य हुआ आप आज्ञा दे कि मैं किस प्रकार आपकी सेवा कर सकता हॅु। तब महर्षि पूलत्सय ऋषि ने कहा कि अर्जुन तुम अतुलित बलषाली हो। जिस रावण के आगे पवन और सागर भी आज्ञा पाने के लिये खडे रहते है ऐसे महा बलषाली मेरे पौत्र को हराकर तुमने बांध लिया है। तुमने उसे हरा कर पूरे जगत में अपना यष बढाया है। मैं चाहता हुॅ कि तुम उसे छोड दो। ऋषि के ऐसा कहने पर सहस्त्रबाहु अर्जुन ने कहा कि हेऋषि श्रेष्ठ आपकी हर आज्ञा षिरोधार्य है। और ऐसा कहकर अर्जून ने रावण को छोड दिया। तब रावण ने सहस्त्रबाहु की और मित्रता का हाथ बढाया और सहस्त्रबाहु ने उस प्रस्ताव को स्वीकार किया और रावण को सत्कार के साथ विदा किया।
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