भारत के स्वर्ण मंदिर की देश और विदेश में पहचान है। यह सिखों का एक बहुत बडा गुरूद्वारा है जिसका असली नाम है श्री हरमिन्दर साहिब। हरमिन्दर साहिब के चारों ओर सोने की परत चढाई गयी है इसलिये इस गुरूद्वारे को स्वर्ण मन्दिर यानि की गोल्डन टेम्पल भी कहा जाता है। यह गुरूद्वारा अपनी सूंदरता और आस्था के लिये पूरी दूनिया में मशहूर है। लेकिन आपको शायद यह पता नहीं होगा कि इस गुरूद्वारे कीं नींव एक मुस्लीम शख्स ने रखी थी।
सिखों के पॉचवें गुरू अर्जून देव ने शुरू करवाया था निर्माण
भारत की संस्कृति को गंगा जमूनी तहजीब भी कहा जाता है यहां दूनिया से कई धर्मो के लोग आये और आक्रमण किया। कुछ लूटकर ले गये और कुछ यहीं बस गये। इसी तरह मूसलमान भी आये उन्होनें बहुत कुछ लूटा भी यूद्ध भी हूये लाखों लोगों की जानें भी गयी। लेकिन साथ ही कुछ आपसी तालमेल भी बढा। इसी तरह सिंखों के पांचवे गुरू अर्जून देव के समय उस समय के मुस्लिम शासक अकबर ने हरमिन्दर साहिब के लिये जमीन दी थी। अकबर ने भव्य गूरूद्वारा निर्माण के लिये इस जमीन का दान कर दिया था।
सभी धर्मों के लोग आते है हरमिन्दर साहिब में
इस जमीन के मिलने के बाद सिखों के पॉचते गुरू अर्जून देव ने लाहौर के एक सूफी संत साई मिंया मीर से हरमिन्दर साहिब की नींव दिसम्बर 1588 में रखवायी थी। साई मियां मीर एक मूस्लिम संत थे। और इस तरह यह देखा जा सकता है कि अर्जून देव ने साप्रदायिक सद्भाव की मिसाल रखी थी। स्वर्ण मंदिर एक ऐसी जगह है जहां हिन्दू ही नहीं बल्कि सभी धर्म और सप्रदायों के लोग आते है और मन्नतें मॉग कर जाते है।
50 हजार लोग पाते है लंगर प्रसादी
स्वर्णमन्दिर सरोवर के बीचोंबीच एक मानवनिर्मित टापू पर बना हूआ है। इस पर सोने की परत चढाई गयी है। जो महाराज रणजीत सिंह के समय चढाई गयी थी। यहां सबसे बडा लंगर लगाया जाता है जहां रोजाना 50,000 से अधिक लोग प्रसादी पाते है। वैसे इस मंदिर पर कई बार आक्रमण हो चूके है और यह कई बार नष्ट हो चूका है। लेकिन लोगों की आस्था के कारण यह दुबारा और भी शान शौकत से बनकर तैयार हो जाता है। 19 वीं शताब्दी में अफगान आक्रमणकारियों ने इसे नष्ट कर दिया था। फिर महाराज रणजीत सिंह ने इसका दुबारा निर्माण करवाया था।