महशिवरात्री के साथ ही आज वेलेंटाईन डे भी है। वेलेंटाईन को वैसे तो प्यार का पर्व कहा जाता है हर कोई इस दिन को अपने अपने प्यार के साथ मनाना चाहता है। अगर प्यार की बात की जाये तो भगवान शिव के प्रेम को अमर प्रेम कहा जाता है। भगवान शिव का जब भी नाम लिया जाता है तो उनके साथ माता सती और माता पार्वती का नाम जरूर लिया जाता है। भगवान शिव को अर्द्धनारीश्वर भी कहा जाता है। भगवान शिव ने वैसे तो दो शादियां की थी लेकिन उनकी पहली पत्नि माता सती ने ही माता पार्वती के रूप में जन्म लिया था जिनसे भगवान शिव ने दूसरी शादी की थी। आईये आज जानते है भगवान शिव की जिंदगी और उनके अमर प्रेम के बारे में।
प्रजापति दक्ष ने किया था भगवान शिव का अपमान
भगवान षिव ने पहला विवाह माता सती के साथ किया था। माता सती ब्रह्मा जी के मानस पुत्र दक्ष प्रजापति की पूत्री थी। माता सती ने भगवान शिव से विवाह प्रजापति की इच्छा के विरूद्ध किया था। प्रजापति भगवान षिव से घृणा करते थे। एक बार प्रजापति दक्ष ने एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया जिसमें उन्होनें सभी को बुलाया लेकिन अपनी बेटी सती और दामाद शिव को नहीं बुलाया। लेकिन माता सती भगवान षिव के मना करने के बावजुद बिना निमंत्रण के अपने पिता दक्ष के यज्ञ में गयी। जहां पर प्रजापति दक्ष ने अपनी पूत्री सती का तिरस्कार किया और भगवान शिव को अपमान भरे शब्द कहे।
ज्हां टूकडे गिरे वहां स्थापित हुये शक्तिपीठ
अपने पति शिव का अपमान देख कर माता सती बहुत दुखी हुयी और उन्होनें यज्ञ की अग्नि में कुदकर अपने आप को भस्म कर लिया। जब भगवान शिव को इस बात का पता चला तो वे कुपित हुये और उन्होनें अपनी जटा से वीरभद्र को पैदा किया जिसने दक्ष के यज्ञ को नष्ट कर दिया और दक्ष का सिर काटकर उसे यज्ञ की अग्नि में डाल कर दंड दिया। भगवान शिव माता सती के जले हुये शरीर को लेकर दुखी होकर घुमते रहे। जब तीनों लोक व्याकुल हुये तब भगवान विष्णु ने अपने सूदर्षन चक्र से माता सती के शव को 52 टूकडे कर दिये। वे टूकडे जहां जहां गिरे वहां आज माता के शक्तिपीठ स्थापित हुये।
माता पार्वती के रूप में जन्म लिया माता सती ने
माता सती ने हिमालय और उनकी पत्नि मैना के घर जन्म लिया। हिमालय पर्वतो के राजा थे इसलिये अपनी बेटी का नाम उन्होनें पार्वती रखा। जिसका अर्थ होता है पर्वतों की रानी। क्योंकी पार्वती माता सती का अवतार थी इसलिये बचपन से ही उनके मन में भगवान शिव के लिये प्यार था। वो मन ही मन शिव को अपना पति मान चुकी थी। किशोरी होने पर वे भगवान शिव की तपस्या करने चली गयी। कई वर्षों तक उन्होनें भगवान शिव की तपस्या की। उनके प्रेम की परिक्षा लेने देवर्षि नारद आये उन्होनें बताया की शिव तो ओघड है भांग धतुरा खाने वाले है। लेकिन पार्वती तो अपने फैसले पर अडिग थी।
माता पार्वती की तपस्या से प्रसन्न हुये शिव
भगवान शिव भी पार्वती की तपस्या से प्रसन्न हुये। भगवान षिव तो अर्न्तयामी थे वे जानते थे कि माता पार्वती माता सती का ही अवतार है इसलिये भगवान शिव ने पार्वती को अपनी पत्नि बनाने का आषीर्वाद दीया। शुभ लग्न में भगवान षिव बारात लेकर हिमालय के घर पहॅुचे और माता पार्वती से विवाह संपन्न कर उन्हें हिमालय लेकर आये। तो ये थी भगवान शिव की प्यार भरी कहानी।