हिमाचल प्रदेश को भगवान ने प्राकृतिक सूदंरता से नवाजा है। प्राकृतिक सूदंरता के कारण ही हर समय यहां पर्यटकों की भीड लगी रहती है। प्राकृतिक सूदंरता के साथ साथ हिमाचल प्रदेश की धार्मिक पहचान भी है। यहां देश के कुछ प्रमुख धार्मिक स्थल और मंदिर है। आज हम बात करने जा रहे है उस मंदिर की जिसमें स्वर्ग जाने के लिये स्वर्ग की सिढीयां मौजुद है। महाभारत काल से जुडा यह मंदिर हजारों साल पुराना है जिसका नाम है बाथू की लडी मंदिर।
हिमाचल प्रदेश में है स्थित
जैसा कि सभी जानते है महाभारत के यूद्ध में कौरवों को हराने के बाद पांडवों ने कई वर्षों तक हस्तिनापुर पर राज्य किया। पांडवों ने कई साल राज्य करने के बाद स्वर्ग की यात्रा आंरभ कर दी थी। मंदिर में आज भी वे स्वर्ग की सीढियां मौजुद है। इन स्वर्ग की सीढियां का सम्बन्ध पांडवो से है। यह मंदिर कांगडा जिले में ज्वाली कस्बे से आधा घंटे की दूरी पर स्थित है। इस मंदिर में आज भी स्वर्ग की 40 सीढियां मौजुद है।
अज्ञातवास के दौरान किया था निर्माण
इन मंदिरों का इतिहास 5000 साल पुराना है। ये मंदिर आठ महिने पानी में रहते है और सिर्फ 4 महिने ही पूरी तरह से नजर आते है। यहां पर आठ मंदिर है जो एक माला की तरह लगते है। इन मंदिरों का निर्माण पाण्डवों ने अज्ञातवास के दौरान भगवान षिव की पूजा के लिये किया था। इन मंदिरों को बाथू पत्थरों से बनाया गया था इसलिये इन मंदिरों को बाथू की लडी कहा जाता है।
भगवान कृष्ण ने की थी कोशिश
अज्ञातवास में रहने के दौरान ही पांडवों ने यहां पर स्वर्ग की सीढियां बनवायी थी। स्वर्ग तक की सीढियां बनाना कोई आसान काम नहीं था इसलिये पांडवों ने भगवान कृष्ण से इन्हें बनाने की विनती की। भगवान कृष्ण ने भी करीब 6 महीने तक बनाने की कोषीष की लेकिन ये नहीं बन पायी थी। इन मंदिरों में मुख्य मंदिर में षिवलिंग स्थापित है। और अन्य मंदिरों में विष्णु भगवान और शेषनाग की मूर्तियां स्थापित है।
कई महिनों तक रहते है पानी के अंदर
मंदिर कई सालों तक पानी में डूबे रहे लेकिन ये मंदिर आज भी सूरक्षित है। मंदिर की एक खासियत ये भी है कि यहां सूर्य अस्त होने से पहलें सूर्य की किरणें भगवान शिव के चरण छूती है और इसके बाद ही सूर्य अस्त होते है। इस मंदिर के दर्षन के लिये मई और जून महिने में ही जाना चाहिये। बाकि अधिकतर समय ये मंदिर पानी में डूबे रहते है।
वन्य विभाग ने बनाये है रिसोर्ट्स
यह मंदिर डेम के किनारे बना है इसके आसपास कई छोटे छोटे टापू बने हुये है जिन्हें रेनसर के नाम से जाना जाता हैं। जहां पर वन्य विभाग ने कुछ रिसोर्टस बनाये हुये है। जहां पर घुमने आने वाले पर्यटकों को घुमने और रूकने की पूरी व्यवस्था है। यहां प्रवासी पक्षि भी काफी संख्या में आते है। यहां के प्राकृतिक नजारे बेहद हि सूंदर है। बाथू की लडी तक पहॅुचने के लिये सबसे पास गग्गल हवाई अड्डा है। जिससे 37 किलोमीटर की दूर पर ज्वाली कस्बा है। और ज्वाली कस्बे से आधे घंटे में इन मंदिरों तक पहॅुचा जा सकता है।